संवादाता वसीम खान :धवरियासाथ गांव की मिट्टी से जन्मे प्रहलाद सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे। वे सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि उस युग का जीता जागता प्रमाण थे जब नेतृत्व और सेवा का मतलब था दिल से जुड़ना। बुधवार दोपहर अचानक उनका निधन हो जाने से न केवल उनका परिवार, बल्कि पूरा गांव और जिला स्तब्ध है।
छात्र जीवन में कॉलेज के पहले छात्रसंघ अध्यक्ष के रूप में उन्होंने जो नेतृत्व किया, वह उस समय की उम्मीदों और संघर्षों का दर्पण था। लेकिन उनका व्यक्तित्व सिर्फ पद तक सीमित नहीं रहा। वे सफल उद्योगपति, प्रगतिशील किसान और सबसे बड़ी बात—सामाजिक स्नेहिल व्यक्ति थे, जिन्होंने हर किसी के दुःख में अपना हाथ बढ़ाया।
जीवन के आखिरी दौर में उन्होंने अध्यात्म का पथ अपनाया। ब्रह्मलीन संत दरबारी दास जी महाराज के सान्निध्य में वे एक साधु के समान वानप्रस्थ जीवन बिताने लगे। योग, ध्यान और वैराग्य उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन गए। उनके इस रूप में भी वे समाजसेवा से पीछे नहीं हटे, बल्कि सिसोदिया संघ और अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के संरक्षक के रूप में सक्रियता बनाए रखी।प्रहलाद सिंह ने एक समृद्ध परिवार छोड़ा, परंतु उनकी कमी को कोई भर नहीं सकता। उनका जीवन और आदर्श आज भी युवाओं के लिए एक अनमोल धरोहर है।
उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए घोसी विधायक सुधाकर सिंह, लोकदल के प्रदेश महासचिव देवप्रकाश राय, क्षत्रिय महासभा के अध्यक्ष राकेश सिंह, सुभासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर के प्रतिनिधि फागू सिंह, भाजपा के अशोक सिंह, गनेश सिंह, सिसोदिया संघ के अध्यक्ष आर.पी. सिंह, आईपीएस अनिल सिंह सिसोदिया सहित अनेक गणमान्य व्यक्तियों ने कहा कि उनकी सादगी, कर्मठता और जनसेवा की भावना इस जिले के लिए अपूरणीय क्षति है।उनका जाना एक युग के अंत जैसा है, पर उनकी यादें और प्रेरणा आने वाली पीढ़ियों को रास्ता दिखाती रहेंगी।