संवाद दाता :- फिरोज अहमद
लखनऊ। पसमांदा मुस्लिम समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मंत्री श्री अनीस मंसूरी ने सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा जताया और कहा –
“हमें आशा है कि सुप्रीम कोर्ट वक्फ मामले का अंतिम निर्णय देते समय इस्लाम की मूल अवधारणा और न्याय की दृष्टि से यह सुनिश्चित करेगा कि पसमांदा मुस्लिम समाज के यतीम बच्चे, बेवा औरतें तथा बेसहारा लोग वक्फ के लाभ से वंचित न रहें। ताकि वक्फ का वास्तविक उद्देश्य अक्षरशः पूरा हो सके।”
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया –
“वक्फ की अवधारणा में पसमांदा मुस्लिम समाज के यतीम बच्चे, बेवा औरतें और बेसहारा लोग प्रमुख रूप से शामिल हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश देश के वक्फ बोर्डों के चेयरमैन, बोर्ड के सदस्य, अधिकारी, कर्मचारी और मुतवल्ली अपनी निजी और पारिवारिक स्वार्थ के लिए वक्फ की संपत्ति का दुरुपयोग करते आए हैं।”
सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 की उस विवादित धारा को अस्थायी रूप से स्थगित किया है, जिसमें वक्फ स्थापित करने के लिए यह अनिवार्य किया गया था कि व्यक्ति कम से कम 5 वर्षों तक इस्लाम का अनुयायी (Practitioner of Islam) हो। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि राज्य सरकारें नियम बनाएंगी जिससे यह निर्धारित किया जाएगा कि कोई व्यक्ति इस्लाम का अनुयायी है या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि राज्य सरकारें वक्फ बोर्डों में CEO की नियुक्ति करते समय मुस्लिम अधिकारियों को प्राथमिकता देंगी। साथ ही, राज्य वक्फ बोर्डों में अधिकतम 3 गैर-मुस्लिम सदस्य और केंद्रीय वक्फ काउंसिल में कुल 20 सदस्यों में से अधिकतम 4 गैर-मुस्लिम सदस्य ही रहेंगे।
इस निर्णय से वक्फ से जुड़ी संपत्ति पर किसी भी प्रकार के अवैध हस्तक्षेप पर रोक लगेगी और यह सुनिश्चित होगा कि वक्फ का संचालन न्याय संगत एवं पारदर्शी ढंग से हो।
श्री अनीस मंसूरी ने राज्य सरकारों से भी आग्रह किया कि वे संवेदनशीलता और निष्पक्षता से नियम बनाकर पसमांदा मुस्लिम समाज के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करें।