सगड़ी आजमगढ़ : असली सफलता वही है जिससे दूसरों को ख़ुशी मिले। जीवन में सफलता का अर्थ हमेशा अधूरा रह जाता है, यदि आप दूसरों के जीवन में बदलाव और खुशी के लिए कुछ नहीं करते हैं। यह बात मुझे उस वक्त समझ में आई थी, जब बचपन में मैं गाँव पर रहकर पढ़ाई करता था। मेरे पिता श्री धर्मदेव सिंह प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे। उनकी ड्यूटी गाँव के बच्चों को पढ़ाना था। पिताजी बच्चों को पढ़ाने के साथ ही साथ उन्हें शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से मजबूत बनाने के लिए भी प्रेरित करते रहते थे, जिससे वे हर स्थिति का सामना करने के लिए तत्पर रहें। उन्हीं को देखकर मेरे अंदर यह विचार घर कर गया कि लोगों और समाज के लिए कुछ न कुछ करना है। मैं बचपन से यह देखता था कि पिता जी अक्सर लोगों के लिए कुछ ना कुछ करते रहते थे। उनकी इन आदतों ने मेरे जीवन पर बहुत ज्यादा प्रभाव डाला। आप सबको यह बताना चाहता हूँ कि निःशुल्क ग्रामीण चिकित्सा शिविर का आयोजन करके गरीब मरीजों के लिए, समाज के लिए आज मैं जो भी कर रहा हूं वह पिता जी से मिली सीख का ही परिणाम है। कई बार लोगों को यह लगता है कि वह बहुत ही साधारण सा है, उसके अंदर कोई बड़ा गुण नहीं है। कुछ बड़ा और अलग करने की क्षमता नहीं है। पर याद रखिए हर इंसान के अंदर कोई न कोई गुण होता है, जरूरत होती है तो उसे जानकर उसका अभ्यास करने की। आपको यह समझना होगा कि जो गुण आपके अंदर है, उसके आधार पर स्वयं में और समाज में क्या परिवर्तन ला सकते हैं। मैंने जो देखा और समझा उससे यह जाना कि मेरे पिता जी बेशक एक छोटे से पद पर थे पर वह सपने हमेशा बड़े देखते थे। एक बार उन्होंने मुंशी प्रेमचंद के नाटक कफ़न का ज़िक्र करते हुए कहा कि उस नाटक में बच्चे के इलाज के लिए उसके पिता के पास पैसे नहीं थे तो उसने पैसे के लिए अपना खून बेचना चाहा। यह देखकर और सुनकर कलेजा मुँह को आ जाता है। पिताजी की इच्छा थी कि हर चिकित्सक को सप्ताह में एक दिन गरीबों को ध्यान में रखते हुए निःशुल्क चिकित्सा करनी चाहिए, जिससे कोई गरीब का बच्चा इलाज से वंचित न रह जाए। पिता जी कहा करते थे कि एक असहाय मरीज की सेवा करने से चेहरे पर जो खुशी और तेज दिखता है, वह बड़े से बड़े लोगों के चेहरे पर नहीं दिखाई देता। तब मैंने ठान लिया कि चाहे कुछ भी हो समाज के लिए कुछ न कुछ करुँगा। आज मैं जो भी कर रहा हूँ या कर पा रहा हूँ, वह सब मेरे पिताजी की देन है। निःशुल्क चिकित्सा शिविर के 14 वर्ष पूरे होने पर आज पिताजी भले ही हमारे साथ नहीं हैं, लेकिन उनकी दिखाई राह मुझे हमेशा प्रेरणा देती रहेगी। उनकी याद में यह निःशुल्क ग्रामीण चिकित्सा शिविर आगे भी ऐसे ही अनवरत चलता रहेगा। आज के शिविर में बहुत दूर-दूर से मरीज आए थे। एक अभिभावक बाजार गोसाईं से अपने बच्चे को लेकर आए थे, जिसका स्वास्थ्य परीक्षण करके उन्हें मुफ्त दवा भी दी गई। इसके साथ ही अगल बगल के दर्जनों गाँव के मरीजों का भी निःशुल्क इलाज किया गया।
