नई दिल्ली: जनसंख्या संबंधी चिंताएं भारतीयों की एक बड़ी आबादी में व्याप्त हो गयी हैं और सर्वेक्षण में शामिल करीब 63 प्रतिशत लोगों ने जनसंख्या में बदलाव के संदर्भ में विभिन्न आर्थिक मुद्दों को अपनी चिंता का प्रमुख कारण बताया है।
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफए) ने यह जानकारी दी है। यूएनएफपीए ने अपनी ‘स्टेट ऑफ द वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट’ (एसडब्ल्यूओपी)-2023 में कहा है, ‘‘हालांकि, बढ़ती आबादी से चिंता नहीं होनी चाहिए या खतरे की घंटी नहीं बजनी चाहिए।’’ रिपोर्ट में आगे कहा गया है, ‘‘इसके बजाय, उन्हें प्रगति, विकास और आकांक्षाओं के प्रतीक के रूप में देखा जाना चाहिए, बशर्ते व्यक्तिगत अधिकारों और विकल्पों को बरकरार रखा जा रहा है।’’ संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार भारत की आबादी बढ़कर 142.86 करोड़ हो गई है और वह चीन को पीछे छोड़ दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है। संयुक्त राष्ट्र के विश्व जनसंख्या ‘डैशबोर्ड’ (मंच) के अनुसार, चीन की आबादी 142.57 करोड़ है। वार्षिक रिपोर्ट में संकेत दिया गया है कि सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले भारतीयों की राय है कि उनके देश की जनसंख्या ‘बहुत बड़ी’ और प्रजनन दर ‘बहुत अधिक’ है।इसमें कहा गया है, ‘‘भारत में राष्ट्रीय प्रजनन दर के संदर्भ में पुरुषों और महिलाओं के विचारों के बीच भी कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं था।’’ एसडब्ल्यूओपी-2023 के हिस्से के तौर पर यूएनएफएफए की ओर से ‘यूगॉव’ द्वारा किये गये एक सार्वजनिक सर्वेक्षण में भारत में 1,007 प्रतिनिधियों से जनसंख्या के मुद्दों पर उनके विचारों के बारे में पूछा गया।
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जनसंख्या से संबंधित सबसे महत्वपूर्ण मामलों की पहचान करने पर, 63 प्रतिशत भारतीयों ने जनसंख्या परिवर्तन के बारे में विचार करते वक्त विभिन्न आर्थिक मुद्दों को शीर्ष चिंताओं के रूप में रेखांकित किया और उसके बाद पर्यावरण, यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों एवं मानवाधिकारों की चिंताओं को तरजीह दी। एसडब्ल्यूओपी-2023 पर यूएनएफपीए-भारत की प्रतिनिधि और कंट्री डायरेक्टर (भूटान) एंड्रिया वोज्नार ने कहा, ‘‘भारतीय सर्वेक्षण के निष्कर्ष बताते हैं कि जनसंख्या की चिंता आम जनता के बड़े हिस्से में व्याप्त है।’’ वर्ष 2021 में, भारत ने परिवार नियोजन में जोर-ज़बरदस्ती न करने पर जोर दिया था और संसद सहित कई मंचों पर कहा था कि वह ऐसी नीतियों की अनदेखी नहीं कर सकता, क्योंकि वे ‘अनुत्पादक’ साबित होंगी।
वोज्नार ने कहा कि महिलाओं और लड़कियों को यौन एवं प्रजनन नीतियों और कार्यक्रमों के केंद्र में होना चाहिए। सर्वेक्षण में जनसंख्या के मुद्दों पर विचार जानने के लिए भारत, ब्राजील, मिस्र, फ्रांस, हंगरी, जापान, नाइजीरिया और अमेरिका के आठ देशों में 7,797 लोगों को शामिल किया गया था।
रिपोर्ट से पता चलता है कि सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले 68 देशों की 44 प्रतिशत महिलाओं और लड़कियों को यौन संबंध बनाने, गर्भनिरोधक का उपयोग करने और स्वास्थ्य देखभाल की मांग करने को लेकर अपने बारे में निर्णय लेने का अधिकार नहीं है; और दुनिया भर में अनुमानत: 25 करोड़ 70 लाख महिलाओं की सुरक्षित, विश्वसनीय गर्भनिरोधक की आवश्यकता पूरी नहीं
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