बाराबंकी: होली का त्योहार ज्यों-ज्यों नजदीक आता जा रहा है। लोगों में काफी हर्ष उल्लास देखने को मिल रहा है शहर बाजारों तथा कस्बों में अमीर गुलाल पिचकारी के साथ-साथ मिठाइयों की दुकानों पर रौनक देखने को मिल रही है साथ ही शराब की दुकानों पर शराबियों का तांता लगा हुआ है। होली की परंपरा हमारे देश में काफी पुरानी परंपरा है मुगल शासक भी जमकर होली खेलते थे।तथा होली पर करोड़ों रुपए खर्च करते थे मुगलों के दौर में हिंदू होली कहते थे तथा मुसलमान ईद-ए-गुलाबी कहते थे मुगल शासन में बड़े-बड़े नादों में रंग गुलाल इत्र आदि भरकर राजा और प्रजा एक साथ पिचकारी चलाते थे और साथ-साथ होली आई रे कन्हाई रंग छलके, सुना दे जरा बांसुरी,के गानों पर खूब थिरकते थे।
यह गीत गंगा जमुनी तहजीब को बयां करता है। 1957 में यह गीत मदर इंडिया फिल्म में शकील बदायुनी ने लिखा था तथा शमशाद बेगम पर इसे फिल्माया गया था। पहले जब होली का रंग उफान पर आता था तो हिंदू सिख बौद्ध मुसलमान सब मस्ती में डूब जाते थे। नवाब वाजिद अली बादशाह अकबर जैसे बादशाह होली पर बड़ी-बड़ी महफिले सजाते थे। आज भले ही कुछ शत्रु देशों के एजेंडे को लागू करके बुरी ताकतों ने यहां की जनता में जहर घोलने का काम किया। लेकिन फिर भी यहां हिंदू और मुसलमानों के बीच ईद दीपावली होली रक्षाबंधन आदि साझे के तौर पर मनाए जाते हैं। नवाब वाजिद अली शाह ने अपने समय में लखनऊवा संस्कृति को अपनी बुलंदियों तक पहुंचाने का काम किया था उस समय होली पर खास इंतजाम हुआ करते थे नवाब ने होली पर एक ठुमरी भी लिखी थी। जिसके बोल कुछ इस तरह हैं। मोरे कन्हैया जो आए पलट के, अबकी होली खेलूंगी मैं डटके, उनके पीछे मैं चुपके से जाकर, रंग दूंगी उन्हें भी लिपट के, यही नहीं आसिफदौला नवाब सादात अली खान के जमाने में भी होली जमकर खेली जाती रही हैं। मीर तकी ने क्या लाइने लिखी थी कि होली खेला आसिफदौला वजीर, रंग सोवत से अजब है खुर्दओपीर, एक बार होली और मोहर्रम एक ही दिन पड़ गया हिंदुओं ने कहा कि हम होली नहीं खेलेंगे क्योंकि मोहर्रम पर मातम मनाया जाता है। नवाब को जब इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने कहा कि त्योहार रोके जाने की कोई जरूरत नहीं है होली होंगी और नवाब साहब ने खुद होली खेली। होली का खुमार बसंत पंचमी से ही चढ़ने लगता है होली में सूफी संतों का भी योगदान रहा है चाहे वह निजामुद्दीन औलिया चाहे अजमेर की दरगाह हो य फिर बरेली सब जगहों पर बसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। तथा सूफी कलाम भी गाए जाते हैं।मुगल बादशाहो के समय दिल्ली आगरे का लाल किला आदि पर जमकर होली खेली जाती थी। इतिहासकार मुंशी जैकी उल्ला ने अपनी किताब तारीख-ए-हिंदुस्तान में लिखा है कि कौन कहता है कि होली हिंदुओं का त्योहार है बादशाह बाबर हिंदुओं के साथ होली खेलते थे उनके पुत्र जलालुद्दीन अकबर के दौर में फूलों के रंगों को इत्र तथा गुलाब जल से बने रंगों को नामों में भरवा कर प्रजा के साथ पिचकारी से रंग खेलते थे।
अकबर खुद पहले अपनी रानियों के साथ रंग खेलने के बाद बाहर निकल कर जनता के साथ रंग खेला करते थे। औरंगजेब को छोड़कर बाकी सभी राजाओं ने होली मनाई। इसके बाद जब अंग्रेजों ने भारत पर राज्य करना शुरू किया तो उन्होंने यहां के त्योहारों में कोई लगाव नहीं रखा वह केवल भारत को लूटने में लगे रहे। इसीलिए हिंदू मुसलमानों की होली का रंग धीरे-धीरे फीका पड़ता चला गया हालांकि अभी भी कई शहरों में हिंदू मुसलमान एक साथ रंग खेलते हैं।जैसे बाराबंकी के कस्बा रामनगर में पूरा दिन रंग खेलने का सिलसिला रहता है। यहां के मुसलमान जब होली का फाग रंग खेलने निकलता है। तो उसमें शामिल सभी फगुवारो को मिठाई खिलाते हैं तथा फूलों की होली साथ साथ खेलते हैं। यहां कस्बे में सुबह से लेकर शाम तक रंग खेला जाता है। यहां के पूर्वजों का कहना है कि यह परंपरा बहुत पुरानी है इस परंपरा से अमीर और गरीब सभी एक श्रेणी में दिखाई देते हैं। यदि किसी गरीब के पास कपड़े खरीदने के पैसे नहीं है तब भी वह इस परंपरा की वजह से आहत नहीं होता है। कस्बे के प्रत्येक गली कूचे में फागुवारे पहुंचकर रंग खेलते हैं तथा शाम होते होते स्टेट द्वार पर पहुंचकर रंग खेलने के बाद रंगों का कार्यक्रम समाप्त होता है और कभी भी कस्बा रामनगर में रंग खेलने को लेकर किसी भी तरह का विवाद भी नहीं हुआ इसलिए आज भी यह परंपरा चली आ रही है।