हिंदू ने इबादतगाह तो मुस्लिम ने बनवाए मंदिर, 250 साल पहले भाईचारा और मोहब्बत ऐसे समझा गए थे हमारे पूर्वज

धर्म/ आध्‍यात्‍म/ संस्‍कृति

संभल, बदायूं, अलीगढ़, बरेली, कानपुर, वाराणसी, मुजफ्फरनगर, जौनपुर, मथुरा उत्तर प्रदेश के ये शहर सुर्खियों में हैं। ये शहर मंदिर-मस्जिद विवाद में उलझे हुए हैं। इनमें कई शहर ऐसे हैं जहां मुस्लिम इलाकों में प्राचीन मंदिर पाए गए। उनपर अतिक्रमण और कब्जे के आरोप लगे। लेकिन प्रदेश के कई शहर ऐसे हैं जहां के धार्मिक स्थल धर्म और मजहब को बांटने वालों के लिए एक नजीर से कम नहीं है। इनमें प्रदेश की राजधानी लखनऊ और झुमके का शहर बरेली भी शामिल है। एक अपनी अदबी बोली के लिए तो दूसरा अपनी गंगा-जमुनी तहजीब के लिए मशहूर है।
लखनऊ-बरेली के इन मंदिर-मस्जिद में नही है धर्म की दीवारें
उत्तर प्रदेश हमेशा से आपसी सौहार्द और अमन का पैगाम देता आया है। यहां की राजधानी लखनऊ में स्थित महावीर मंदिर और पंडाइन की मस्जिद हो या फिर बरेली का लक्ष्मी नारायण मंदिर और बुध मस्जिद, यह धार्मिक स्थल लोगों को आपसी मोहब्बत और एकता में बांधे रखने का संदेश देते हैं। खास बात यह है कि इन मंदिरों का निर्माण कराने वाले मुस्लिम और मस्जिद बनवाने वाले हिंदू समुदाय से थे। इन इबादतगाहों को देखकर आज भी लोग सुकून महसूस करते हैं। ‘मुस्कराइए आप लखनऊ में हैं…’ जी बिलकुल मुस्कराएं और खिलकर मुस्कराएं. यह लखनऊ है, अदब की नगरी। जहां लोग ‘पहले आप’ कहकर रास्ता दे देते हैं। यह नगरी कई सदियों से सुलहकुल का पैगाम देती आ रही है। यहां बेगम आलिया का बनवाया मशहूर महावीर मंदिर है। बड़े मंगल पर होने वाले भंडारा नवाब सआदत अली खान की निशानी है। लखनऊ के अमीनाबाद में स्थित पंडाइन की मस्जिद एक हिंदू बेगम की बनवाई निशानी है। इस शहर की हर इमारतों को मजहबी दीवारों से दूर रखा गया।
मन्नत पूरी होने पर बेगम अलिया ने बनवाया महावीर मंदिर
लखनऊ के अलीगंज में स्थित महावीर मंदिर का निर्माण 6 जून 1783 को किया गया था। इस प्राचीन मंदिर को नवाब सआदत अली खान की मां, बेगम आलिया ने बनवाया था। इसके निर्माण का किस्सा बेहद दिलचस्प है। इतिहासकार डॉ. योगेश प्रवीण की किताब लखनऊनामा के मुताबिक, बेगम आलिया के कोई औलाद नहीं थी। उन्हें किसी ने सलाह दी थी कि वह लखनऊ के प्राचीन मंदिर में मंगल के दिन हनुमान जी की पूजा करें। बेगम आलिया ने ऐसा ही किया। फिर उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया, उस दिन मंगल था। बेगम आलिया का यह बेटा नवाब सआदत अली खान थे. जिस मंदिर में बेगम अलिया मन्नत मांगी थी वह काफी जर्जर हो गया था। जिसे देखते हुए उन्होंने महावीर मंदिर का निर्माण कराया था। कहा ये भी जाता है कि बेगम आलिया को सपने में भगवान हनुमान की मूर्ति दबे होने का पता चला. वह उस स्थान पर पहुंची जहां का सपना उन्हें आया था. वहां जमीन में दबी मूर्ति मिली, जिसे निकालकर उसी स्थान पर मंदिर का निर्माण कराया गया।
ब्राह्मण महिला ने बनवाई पंडाइन मस्जिद
लखनऊ के अमीनाबाद इलाके में स्थित पंडाइन की मस्जिद हिंदू-मुस्लिम एकता के साथ दोस्ती की निशानी भी है। इतिहासकारों के मुताबिक, इस भव्य मस्जिद का निर्माण 18वीं सदी में कराया गया था। इसका निर्माण ब्राह्मण महिला रानी जय कुंवर पांडे ने अपनी प्रिय मित्र खदीजा खानम के लिए करवाया था। खदीजा खानम अवध के पहले नवाब अमीन सआदत खान बुरहान-उल-मुल्क की पत्नी थीं। रानी जय कुंवर पांडे अमीनाबाद की मालिक थीं। वह तत्कालीन अवध नवाब, सआदत अली खान की बेगम की करीबी दोस्त थीं। उनकी दोस्ती इतनी गहरी थी कि उन्होंने अपनी दोस्त खदीजा खानम को तोहफे के रूप में यह मस्जिद बनवाई थी।
बरेली के लक्ष्मी-नारायण मंदिर में है चुन्नू मियां का योगदान
उत्तर प्रदेश का बरेली अमन और आपसी भाईचारे का शहर है। इसे नाथ नगरी और बरेली शरीफ भी कहा जाता है। यहां सभी धर्मों के पवित्र स्थल हैं। इस शहर की पहचान विश्व पटल पर है। सूफी बुजुर्ग आला हजरत दरगाह दुनियाभर में मशहूर है। यहां पवित्र सात नाथ मंदिर हैं। इन्हीं में एक लक्ष्मी नारायण मंदिर भी है। शहर के कटरा मानराय में स्थित यह मंदिर हिंदू-मुस्लिम एकता की निशानी है। इसे बनाने के लिए शहर के रईस फजरुल रहमान उर्फ चुन्नू मियां ने अपनी जमीन, पैसा के साथ श्रमदान भी किया। बताते हैं कि आजादी के बाद हुए बंटवारे में सरहद पार से आए सिंधी, हिंदू व पंजाबी परिवार बरेली के कटरा मानराय में आकर बस गए थे। उन्होंने चुन्नू मियां से बगैर पूछे उनकी जमीन पर पूजास्थल बना लिया। मामला कोर्ट पहुंचा। बाद में चुन्नू मियां का मन बदला और उन्होंने उस जमीन को मंदिर के लिए दान कर दिया। इतना ही नहीं मंदिर बनवाने के लिए पैसा और श्रमदान भी किया। इस मंदिर की आधारशिला देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने रखी। आज भी चुन्नू मियां के वंशज इस मंदिर में आते हैं।
बुध मस्जिद की देखरेख करता है शर्मा परिवार
बरेली के कुतुबखाना रोड के पास नया टोला में सैकड़ों साल पुरानी मस्जिद आपसी भाईचारे का पैगाम दे रही है। यहां नमाजियों के साथ बड़ी संख्या में हिंदू अकीदतमंद भी आते हैं। बुधवार के दिन लोगों की भीड़ उमड़ती है तो इसे बुध मस्जिद कहा जाने लगा। इस मंदिर की देखरेख वहीं रहने वाला शर्मा परिवार करता है। परिवार के सदस्य संजय शर्मा ने मीडिया को बताया था कि करीब 100 साल पहले मस्जिद कच्ची थी, जिसके सामने उनके पूर्वज रहा करते थे। उनमें पंडित दाशीराम के कोई औलाद नहीं थी। एक दिन उन्होंने मस्जिद में औलाद के लिए दुआ मांगी जो कुबूल हुई। उनके एक पुत्र हुआ, जिनका नाम पंडित द्वारिका प्रसाद रखा। उन्होंने मस्जिद के लिए चंदा इकट्ठा कर इसे पक्का कराया। तभी से उनका परिवार इस मस्जिद की देखरेख करता आ रहा है। अब ऐसा भी नहीं कि ऐसी इबादतगाहें सिर्फ लखनऊ और बरेली में ही हैं। यह आपके शहर में भी हैं! उन्हें तलाशिए और वहां जाकर सुकून महसूस कीजिए।