मनुष्यों द्वारा बाघों के साथ क्रूरता बरतने में नही छोड़ी गयी कोई कसर, बाघों की घटती संख्या चिंता का विषय

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नई दिल्ली
देश में घटती बाघों की संख्‍या सरकार के लिए चिंता विषय है। पर्यावरण के लिए भी ये खतरे की घंटी है। अभयारण्यों के आसपास रहने वाले कुत्ते संक्रामक बीमारी फैला रहे हैं। ऐसे में कई सख्‍त कदम उठाने की आवश्‍यकता है। साथ ही मौजूदा नियमों का भी सख्‍ती से पालन कराना होगा। तभी भविष्‍य में हम बाघ दिवस मना पाएंगे।
हर साल 29 जुलाई को बाघों के पारिस्थितिकीय महत्व को बताने की दृष्टि से विश्व बाघ दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 2010 में सेंट पीटर्सबर्ग टाइगर शिखर सम्मेलन में हुई थी। यह चिंतनीय है कि मानवों ने बाघों के साथ क्रूरता बरतने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। लोकसभा में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री अश्विनी चौबे ने बताया है कि बीते तीन साल यानी 2019 से लेकर 2021 के बीच देश में 329 बाघों की मौत हुई। इनमें से 68 तो स्वाभाविक मौत मरे, लेकिन पांच बाघों की मौत अस्वाभाविक पाई गई। 29 बाघों को शिकारियों ने निशाना बनाया, जबकि 30 बाघ लोगों पर हमले में मारे गए। 197 बाघों की मौत के सही कारणों का अभी पता नहीं चल पाया है और उसकी जांच चल रही है।
अकेले भारत में दुनिया के 60 प्रतिशत बाघ पाए जाते हैं, लेकिन यहां भी बाघों की संख्या में बीते वर्षों में गिरावट आई है। एक सदी पहले भारत में कुल एक लाख बाघ हुआ करते थे। यह संख्या आज घटकर महज 1,500 रह गई है। ये बाघ अब भारत के दो फीसद हिस्से में रह रहे हैं। निरंतर बढ़ती आबादी और तीव्र गति से होते शहरीकरण की वजह से दिनोंदिन जंगलों का स्थान कंक्रीट के मकान लेते जा रहे हैं। जंगल कटने के कारण बाघों के रहने के निवास में कमी आ रही है जिससे उनकी संख्या घटती जा रही है।बाघों के साम्राज्य में डिजिटल कैमरे की घुसपैठ और पर्यटन की खुली छूट के कारण तस्कर आसानी से बाघों तक पहुंच रहे हैं और तस्करी की रूपरेखा तैयार कर रहे हैं। बाघों को खतरनाक बीमारियों से भी खतरा बढ़ रहा है। अभयारण्यों के आसपास रहने वाले कुत्ते संक्रामक बीमारी फैला रहे हैं, जो बाघों के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है। इसके अलावा करंट लगने, वन्य जीव-मानव संघर्ष, रेल-रोड एक्सीडेंट के कारण भी बाघों को अपनी गंवानी पड़ रही है।
वैसे तो वन्य जीव संरक्षण कानून के तहत राष्ट्रीय पशु बाघ को मारने पर सात साल की सजा का प्रविधान है, लेकिन लचर स्थिति के कारण विरले लोगों को ही सजा हो पाती है। लिहाजा अब जंगल टास्क फोर्स का गठन किया जाना चाहिए और उसे पुलिस के समकक्ष अधिकार दिए जाने चाहिए। वन्य जीवों एवं जंगल से जुड़े मामलों के निपटारे के लिए विशेष टिब्यूनल की स्थापना और सूखे एवं किसी भी आपदा जैसे कि आग वगैरह पर तुरंत और प्रभावी कार्रवाई के लिए आपदा प्रबंधन टीमों का गठन होना चाहिए।
वन विभाग को बेहतर आधुनिक साजो-सामान और अधिक अधिकार दिए जाएं जिससे वे शिकारियों एवं तस्करों का मुकाबला कर पाएं। कानून का पालन और खुफिया तंत्र को विकसित किए जाने की भी जरूरत है। साथ ही लोगों को भी जागरूक करना पड़ेगा, ताकि वे वनों और उसमें रहने वाले जीवों के प्रति संवेदनशील रहें