नई दिल्ली: कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) ने सोमवार को संकल्प लिया कि अगर अगले साल लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र में पार्टी की सरकार की बनती है तो राष्ट्रीय स्तर पर जाति आधारित जनगणना करवाई जाएगी तथा अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी), अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा को कानून के माध्यम से खत्म किया जाएगा।
कार्य समिति की चार घंटे की बैठक के बाद पारित प्रस्ताव में यह भी कहा कि कांग्रेस ओबीसी महिलाओं की भागीदारी के साथ महिला आरक्षण लागू करने के लिए संकल्पित है। प्रस्ताव में बिहार की जाति आधारित गणना के आंकड़ों का स्वागत करते हुए कहा गया, ‘‘ सर्वे में सामने आए आंकड़ों में प्रतिनिधित्व और जनसंख्या में हिस्सेदारी के बीच जो असमानता दिख रही है, वो सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने की तत्काल आवश्यकता को सामने लाती है।’’कार्य समिति का कहना है, ‘‘सीडब्ल्यूसी ओबीसी के भीतर उप-वर्गीकरण के रोहिणी आयोग के उद्देश्य का भी स्वागत करती है, लेकिन साथ ही साथ यह रेखांकित करती है कि विभिन्न समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर विस्तृत डेटा के बिना यह अधूरा होगा। यह डेटा वर्ष 2011 की सामाजिक, आर्थिक और जाति जनगणना से प्राप्त किया जा सकता है, जिसके आंकड़े अभी तक जारी नहीं किए गए है।
इस डेटा को प्राप्त करने का दूसरा तरीका अद्यतन जाति जनगणना है।’’ कार्य समिति ने प्रस्ताव में कहा, ‘‘कांग्रेस गारंटी देती है कि हमारे नेतृत्व वाली सरकार सामान्य रूप से होने वाली दशकीय जनगणना के तहत राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना करवाएगी। लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिश आरक्षण को जल्द से जल्द लागू किया जाएगा।
अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के साथ ही साथ ओबीसी समुदायों की महिलाओं के लिए भी इसमें पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाएगा। मोदी सरकार द्वारा लगाई गई जनगणना और परिसीमन की अनावश्यक बाधाओं को तुरंत हटाएंगे।’’ उसने कहा कि कांग्रेस सत्ता में आने पर जनसंख्या के अनुरूप हिस्सेदारी के लिए कानून के माध्यम से ओबीसी, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण के लिए 50 प्रतिशत की सीमा को हटाएगी।
कांग्रेस कार्य समिति ने ‘न्यूजक्लिक’ के मामले में कुछ पत्रकारों के खिलाफ दिल्ली पुलिस की कार्रवाई का उल्लेख करते हुए कहा गया है, ‘‘ यह मोदी सरकार द्वारा कानून के दुरुपयोग और सवाल पूछने वालों के ख़िलाफ़ केंद्रीय एजेंसियों को छोड़ देने का और भी ज़्यादा भयावह रूप है।
इस तरह की कार्रवाई स्वतंत्र प्रेस को नुक़सान पहुंचाती है एवं सरकार को जवाबदेह ठहराने के लिए नागरिकों, पत्रकारों और राजनेताओं के मौलिक अधिकारों में बाधा डालती है। साथ ही दुनिया भर में एक लोकतंत्र के रूप में भारत की साख को नीचे गिराती है।’’