ब्यूरो चीफ
मोहम्मद अंसार खान मऊ
महिला कार्मिकों पर गलत नजर रखने या उत्पीड़न करने पर होगी जेल
जिलाधिकारी
जिलाधिकारी प्रवीण मिश्र की अध्यक्षता में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना के अंतर्गत पी.सी. पी.एन.डी.टी एक्ट एवं महिलाओ का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीडन (रोकथाम, निषेध और निवारण अधिनियम 2013) के तहत कार्यशाला का आयोजन किया गया।
जिला प्रोवेशन अधिकारी डॉक्टर श्वेता त्रिपाठी ने बताया कि महिलाओं का कार्य स्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध एवं प्रतितोष) अधिनियम 2013 एवं पीसीपीएनडीटी अधिनियम के तहत महिलाओं को प्रशिक्षण देकर उन्हें जागरूक किया जाना है।
कार्यशाला के दौरान जिला विधिक सेवा प्राधिकरण से चीफ लीगल एड डिफेंस काउंसिल मोo मुक़द्दर जरित द्वारा प्रशिक्षण दिया गया।
जिसमे उन्होंने कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम 2013 तथा पी.सी.पी.एन.डी.टी. एक्ट 1994 के तहत महिलाओं के अधिकार के बारे में विस्तार से बताया।
जिलाधिकारी द्वारा बताया गया कि भारत की व्यस्क महिलाओं की जनसंख्या (जनगणना 2011 ) के आधार पर गणना की जाए तो पता चलता है कि 14.58 करोड़ महिलाओं (18 वर्ष से अधिक की उम्र) के साथ यौन उत्पीड़न जैसा अपमानजनक व्यवहार हुआ है। सवाल उठता है कि वास्तव में कितने प्रकरण दर्ज हुए? राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2006 से 2012 के बीच आईपीसी की धारा 358 के अंतर्गत 283407, धारा 509 के तहत 71843 और बलात्कार के 154251 प्रकरण दर्ज हुए। मतलब साफ है कि बलात्कार के अलावा उत्पीड़न के अन्य आंकड़ों को आधार बनाया जाए तो साफ जाहिर होता है कि अभी भी वास्तविक उत्पीड़न के एक प्रतिशत मामले भी सामने नहीं आते हैं।
उन्होंने कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न, रोक थाम प्रतिषेध और निवारण अधिनियम 2013 के संबंध में बताया कि सन 2013 में कार्य स्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न अधिनियम को पारित किया गया था जिन कार्यालय में या संस्थाओं में 10 से अधिक लोग कार्यरत होंगे वहां पर आंतरिक समिति का गठन किया जाएगा और उस समिति की अध्यक्ष महिला होगी। जिलाधिकारी द्वारा पूर्व में दिए गए निर्देश के क्रम में जिला प्रोवेशन अधिकारी से समस्त विभागों में आंतरिक समिति के गठन की जानकारी ली गई साथ ही उन्होंने कहा कि जनपद में कार्यरत समस्त महिलाओं की बैठक कर महिला लैंगिक अधिनियम की सार्वजनिक जानकारी दी जाए जिससे हर कार्मिक महिला इस अधिनियम की जानकारी अपने पास रखें और भविष्य में उत्पीड़न का शिकार होने से बच सके। महिला कार्मिकों पर गलत नजर रखने या उत्पीड़न करने की शिकायत मिली तो दोषी को जेल भेजने की कार्रवाई की जाएगी।
पी.सी.पी.एन.डी.टी. एक्ट के बारे में जिलाधिकारी ने बताया कि इस अधिनियम को लागू करने का मुख्य उद्देश्य गर्भाधान से पहले अथवा बाद में लिंग चयन तकनीकों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाना और लिंग चयनात्मक गर्भपात के लिए प्रसव पूर्व निदान तकनीकों के दुरुपयोग को रोकना है। उन्होंने बताया कि भ्रूण के लिंग का पता लगाने के उद्देश्य से प्रयोगशाला या केंद्र अथवा क्लिनिक अल्ट्रासोनोग्राफी सहित कोई परीक्षण किया जाना अपराध है।
उन्होंने यह भी बताया कि प्रसव पूर्व और गर्भधारण पूर्व निदान दुरुपयोग को रोकने के लिए अधिनियम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और इसका उद्देश्य कन्या भ्रूण हत्या को रोकना है। और साथ ही ये भी कहा की बेटियों को बचाने की जरूरत है न की उन्हें गर्भ में ही मारने की, बेटियां ही कल का भविष्य है।
कार्यशाला के दौरान जिला विकास अधिकारी उमेश चंद्र तिवारी, जिला प्रोबेशन अधिकारी डॉ श्वेता त्रिपाठी, जिला कार्यक्रम अधिकारी अजीत कुमार सिंह, अनीता यादव, अर्चना राय, संध्या सिंह, सहित संबंधित अन्य विभागों के अधिकारी उपस्थित रहे।